दागियों के सवाल पर नीयत में खोट

मालेगांव बम विस्फोट कांड में आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के भोपाल संसदीय सीट से भाजपा का उम्मीदवार बनाये जाने के साथ ही उनके खिलाफ लंबित मामले को लेकर भाजपा की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं। प्रज्ञा ठाकुर ने भी भाजपा का उम्मीदवार बनते ही 'हिन्दू आतंकवाद' के मुद्दे को हवा देकर 17वीं लोकसभा के लिये चल रही चुनाव प्रक्रिया को एक नयी दिशा देने का प्रयास किया है। यह सही है कि इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महाराष्ट के वर्धा में चुनावी सभा के दौरान ‘हिन्दू आतंकवाद' का मुद्दा उठाया लेकिन यह बहुत अधिक परवान नहीं चढ़ सका। प्रज्ञा ठाकुर ने जैसे ही 'हिन्दू आतंकवाद' और 'हिन्दुत्व' को लेकर अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के प्रत्याशी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को निशाना बनाना शरू किया तो उन्होंने 'हिन्दत्व' को सिरे से नकारते हुए कह दिया कि यह शब्द उनकी डिक्शनरी में है ही नहीं। यह कोई पहला मौका नहीं है जब किसी गंभीर अपराध के आरोपी, जो जमानत पर है और उसे अभी तक अदालत ने दोषी नहीं ठहराया कोशाना है, को किसी राजनीतिक दल ने अपना प्रत्याशी बनाया है। इससे पहले भी राजनीतिक दलों ने आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओं को अपना उम्मीदवार बनाया और वे जीतकर जो जमानत प संसद विधानसभा का गान संसद और विधानसभा में पहुंचेयह दुर्भाग्य ही है कि संगीन अपराधों के आरोपियों के चुनाव - लडने और उनके संसद तथा विधानसभा पहंचने पर अंकश लगाने के लिये भले ही एक-दो गैर सरकारी संगठन आवाज उठाते रहे हैं लेकिन राजनीतिक दलों और सरकार ने इस दिशा में अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। स्थिति यह है कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का तेजी से निपटारा सुनिश्चित कराने के लिये उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बावजूद भी वस्तुस्थिति जस की तस ही नजर आ रही है। शीर्ष अदालत ने विशेष अदालतें गठित करने का आदेश दिया लेकिन ऐसे मकदमों KEEEEE के निपटारे के संबंध में अभी कोई ठोस आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं ।वर्तमान और पूर्व सांसदों- विधायकों के खिलाफ 4122 आपराधिक मुकदमे अदालतों में लंबित हैं। इनमें से 1.991 मामलों में तो अभी तक आरोप भी निर्धारित नहीं हुए हैं। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि इन पर मुकदमा चलाने की कार्यवाही कैसे आगे बढेगी। उच्चतम न्यायालय को उपलब्ध करायी जानकारी के अनुसार इन 1991 आपराधिक मामलों में अभी तक आरोप तय नहीं - - हुए हैं। इनमें 264 मामलों में उच्च न्यायालय के स्थगन की वजह से आरोप निर्धारित नहीं हुए हैं। ये । मामले देश के 724 जिलों में से 440 जिलों में लंबित हैंइनमें से 505 मुकदमे सत्र अदालतों में और 1926 मामले मजिस्ट्रेट की अदालत में लंबित हैंइनके अलावा 33 मुकदमे विशेष अदालत में लंबित हैं जबकि 1650 मुकदमों को शीर्ष अदालत के निर्देश पर सांसदों-विधायकों के लिये बनी विशेष अदालतों में उत्तर प्रदेश में 992 और मध्य प्रदेश में 168 मुकदमों को इलाहाबाद और भोपाल में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली विशेष अदालतों को सौंपा गया है। इसी तरह, आंध्र प्रदेश में 100 में से 38 और तेलंगाना में 199 में से 66 मुकदमे विशेष अदालतों को सौंपे गये हैं। दिल्ली में 38 मुकदमे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश और 86 मुकदमे मजिस्ट्रेट स्तर के विशेष न्यायाधीश की अदालतों को स्थानांतरित किये गये हैं। न्यायालय को बताया गया है कि सबसे अधिक 992 आपराधिक मुकदमे उत्तर - - - प्रदेश में लंबित हैं। इसके बाद बिहार का नंबर आता है जहां ऐसे 904 मुकदमे लंबित हैं जबकि केरल में 312 मामले लंबित होने की जानकारी न्यायालय को दी गयी है।उत्तर प्रदेश में जनप्रतिनिधियों क खिलाफ लाबत मामला म 2002 से 2016 के दरम्यान पूर्व सांसद अतीक अहमद के खिलाफ 22 प्राथमिकियां दर्ज हुईं। इसी तरह, पूर्व विधायक पवन कुमार पाण्डे के खिलाफ 1989 से 2017 के दौरान दर्ज 12 प्राथमिकी में से तीन मामले उम्रकैद या मौत की सजा के दण्डनीय अपराध से संबंधित हैं। एक पूर्व विधायक खालिद अजीम के खिलाफ 2003 से 2011 के दौरान दर्ज छह - - - - - प्राथमिकियां में से पांच मामले उम्रकैद या मौत की सजा के दंडनीय अपराध के हैं और वे विभिन्न चरणों में लंबित हैं। एक वर्तमान विधायक उपेन्द्र तिवारी के खिलाफ 1996 से 2011 के दौरान छह प्राथमिकियां दज हइ । इसा तरह. पव विधायक छोटेलाल गंगवार के खिलाफ 17 मार्च 1008 को प्राथमिकी दर्ज हई जिसमें 14 दिसंबर, 1999 को आरोप पत्र दाखिल हआ था। बिहार में 1991 से 2018 के दौरान दर्ज 23 ऐसे मामले अभी भी लंबित हैं. जिनमें उम्रकैद की सजा हो सकती है।इन तथ्यों के आलोक में राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त कराने के प्रति राजनीतिक दलों की गंभीरता को समझा जा सकता है।