वक्त के साथ बदलती धर्मनिरपेक्षता की दृष्टि

सोवियत यूनियन का पतन और विखंडन यूरोप भर में वामपंथी व नास्तिक सिद्धांत वाली सरकारें रद्द करने का सबब बना था। इस घटनाक्रम से विश्वभर में धार्मिक प्रवृत्ति का पुनरुद्धार और प्रभाव बढ़ना शुरू हुआ था। आज कोई देश अपने आंतरिक मामलों के अलावा विदेश एवं सुरक्षा नीतियों पर क्या सोच और व्यवहार रखेगा, इसमें धर्म अहमियत स्थान रखता है, जबकि तीन दशक पहले ऐसा नहीं था। ऐसा कभी सोचा भी नहीं जा सकता था कि वामपंथी पुतिन रूसी रूढ़िवादी गिरजाघरों में कभी दिखेंगे लेकिन आज वह चर्चों में इबादत करने के अलावा पादरियों को काफी इज्जत देते हुए दिखाई देते हैं। कइयों का दावा है कि कार्ल मार्क्स के सिद्धांत अब 'इतिहास की रद्दी की टोकरी' में हैं। सैमुअल हटिंग्टन की कयामत को लेकर की गई भविष्यवाणी के मुताबिक धार्मिक लकीरों के आधार पर जुदा संस्कृतियों वाले देशों के बीच टकराव के आसार बनते जा रहे हैं। अमेरिका में अल कायदा द्वारा किये गये 9/11 आतंकी हमले में अधिसंख्य सऊदी अरब के नागरिक थे और इस घटना ने नई वैश्विक व्यवस्था का आगाज किया था, विशेषकर अमेरिका और यूरोप में, जहां धार्मिक प्रवचन धर्मांधता का पुट लेने लगे थे, खासतौर पर मुसलमानों में। इस बात का इल्म कम ही लोगों को है कि इस्लामिक देश आपस में खुद भी कई विभाजन की लकीरों में बंटे हुए हैं। बात जब वर्ग की हो तो शिया-सन्त्री में और जब सांस्कतिक विभिन्नता की हो निगा और उनके तो अरबी-फारसी लीक साफ है। राष्ट्रपति ट्रंप और उनके और नजदीकी सहयोगियों का व्यवहार और सोच इस धारणा का जीवंत नमना है कि दस्लामिक'मल्य' यहती-ईसाई भी नीना नीतियों में रिलथित टोने लगी है। * वाला हमें नापसंद करता है।' अमेरिकी विश्लेषकों के अनसार सोनवने वाले नीति-विचारकों (थिंक टैंक). बेवसाइटों. रेडियो एवं टेलीविजन पर आने वाले कार्यक्रमों पर हावी होता जा रहा है। माना जा रहा है कि ट्रंप ने बहुत से ऐसे व्यक्तियों को मख्य पदों नियक्त कर रखा है जो से पात्र हैं। 'टाला विरोधी' सलाहकारों की सची में सरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन राशि की र के अंदर अपनी सरकारों से मस्लिमों की शरण को खारिज करके वापिस भेजने की मांग जोर पकडती जा रही है। जहां कछ यरोपियन देश मस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने पर पाबंदी लगाने के समर्थक हैं वहीं स्विटजरलैंड जैसे मुल्क ने अपने यहां देशभर में मस्जिदों की विशिष्ट पहचान रही मीनारें बनाने पर प्रतिबंध लागू कर दिया पहचान रहा मानार बनान पर प्रातबध लागू कर दिया ह। मुस्लिम आव्रजका का लकर यूरोपियन लोगा है। मुस्लिम आव्रजकों को लेकर यूरोपियन लोगों का डर बाल्जयम, नीदरलैंड और फास में कुछ ज्यादा ही उभार पर है क्योंकि वहां पहुंचे मुस्लिम शरणार्थियों में कुछ आतंकी संगठनों जैसे कि आईएसआईएस से प्रभावित हैं। पिछले कुछ वक्त में इन लोगों ने वहां हिंसा और आतंकी हमले किए हैं। यह सब उस वक्त घटित हो रहा है जब इस्लामिक जगत खुद आपसी रंजिशों और तनावों का शिकार है। इस स्थिति में आगे उभार अमेरिका के नेतृत्व में अफगानिस्तान में तालिबान और सीरिया-इराक में आईएसआईएस के खिलाफ चल रहे सैनिक अभियानों की वजह से है। इन अभियानों ने बेशक अल कायदा, तालिबान और आईएसआईएस को छितरा दिया है लेकिन ये इन्हें पूरी तरह से नेस्तनाबूद नहीं कर पाए हैं। 57 मुस्लिम देशों के संगठन 'इस्लामिक कानफेंस' के महासचिव ने हाल ही में मुसलमानों को दरपेश मुसीबतों- पूर्वाग्रहों पर, खासकर अमेरिका और यूरोप में, अपने वक्तव्य में कहा : 'इस्लामोफोबिया पश्चिमी जगत में तेजी से बढ़ रहा है और इस्लाम से डर का होवा तीखे अभियानों और तीखे भाषणों की वजह से जोर पकड़ता जा रहा है। इसके चलते इक्का-दुक्का या कहीं एकत्र हुए मुस्लिमों पर, बुर्का अथवा हिजाबधारी महिलाओं और इस्लामिक स्थलों, मुस्लिम पहनावे इत्यादि को निशाने बनाने वाली घटनाओं में काफी इजाफा हआ है। अमेरिका कनाडा. जर्मनी, स्वीडन, यके और नीदरलैंड में कनाडा, जर्मनी, स्वीडन, यूके दीगर मस्जिदों में आगजनी और तोड़फोड़ की कई घटनाएं हो चकी हैं। 'इस्लामिक जगत की निगाह में यरोपियन युनियन और अमेरिका की बनिस्बत भारत को मस्लिमों से भेदभाव करने वाला देश नहीं माना जाता है। हालांकि चीन अपने शिनजियांग प्रांत में रहने वाली मुस्लिम जनसंख्या के प्रति काफी निर्दयी रहा है लेकिन हैरानी की बात है कि इन देशों ने इस पर अपनी आंखें मंद रखी हैं। हालांकि भारत में धर्मनिरपेक्षता को लेकर गर्मागर्म बहस जारी है तथापि हमारे यहां किसी भी संपटाय टाग अपनी धार्मिक मागता आस्थाओं, रीति-रिवाजों, पहनावे इत्यादि का पालन करने पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध या भेदभाव नहीं है परंतु राजनीतिक रूप में अल्पसंख्यकों से फर्क रखना विवाद का विषय बना हुआ है लेकिन हमारे यहां भी आया है। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जो सार्वजनिक तौर पलाशा निर्लिन था रखते थे, वे 1025 ईस्वी में महमूद गजनी द्वारा बहुत कम या न के बराबर तोड़े गए सोमनाथ मंदिर के पुनरुद्धार के बाद कपाट फिर से खोले जाने वाले आयोजन में अपने गृहमंत्री सरदार पटेल की शिरकत के सख्त खिलाफ थे। तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने भी नेहरू की उक्त सलाह को साफ खारिज करके इस आयोजन में यह कहते हए भाग लिया था : 'मैं अपने धर्म को मानता हैं और खद को इससे अलहदा नहीं कर सकता।'इंदिरा गांधी और राजीव गांधी, दोनों ने ही धार्मिक प्रतीकवाद का राजनीतिक महत्त्व समद्य लिया था। इसीलिए वे अक्सर हिंदू मंदिरों और सफी दरगाहों पर जाया करते थे। अपने पडनाना (नेहरूजी) की सोच को किनारे कर राहुल गांधी ने हाल ही में सोमनाथ मंदिर की अति प्रचारित यात्रा की थी। राहुल गांधी ने पिछले दिनों अमेरिकी राजदूत टिमोथी से भेंट में 'हिंद आतंकवाद' पर एतराज जताया था। यह बात चौंकाने वाली और व्याख्या से परे है। नेताओं के लिए धर्मनिरपेक्षता का पालन न प्रतीकवाद का सहारा लेना चनावी राजनीति का एक महत्त्वपर्ण अवयव है। धर्मनिरपेक्षता ऐसी 'वर्जना' है, जिसे अब धार्मिक रुझान वाले वोटरो का समर्थन पाने के लिए अक्सर त्याग दिया जाता यह साफ है कि भारत में भी धार्मिक रुझान के स्थान है